मौत का ज़िक्र होते ही, हम सब चुप हो जाते हैं. कोई मौत के बारे में बात भी करता है तो लोग उसे रोकते हैं.
कहते हैं कि ये क्या मरने-मारने की बुरी बात ले बैठे.
ज़िंदग़ी की बात करो, ज़िंदादिली की बात करो. मौत का नाम आते ही लोगों से भरे कमरे में सन्नाटा पसर जाता है. जबकि मौत तय है.
ज़िंदगी में एक यही चीज़ है जो तय है. बाक़ी सब अनिश्चित है.