सिख पंथ में यह प्रथा लगभग १५ वीं सदी में शुरू हुई थी। श्री गुरू नानक देव जी के उपदेशों से वाणी में, जो एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है, उससे स्पष्ट है कि लंगर प्रथा श्री गुरू नानक देव जी के समय शुरू हुई थी। बाला-मरदाना के साथ रहकर वह जहां भी गये, भूमि पर बैठकर ही भोजन करते थे।