सन् १८२५-२६ में जर्मन भौतिकविद् एवं तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉर्ज साइमन ओम ने यह नियम प्रतिपादित किया था।
ओम का नियम (Ohm's Law) के अनुसार यदि ताप आदि भौतिक अवस्थायें नियत रखीं जाँय तो किसी प्रतिरोधक (या, अन्य ओह्मीय डिवाइस) के सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर उससे प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।
अर्थात्
V ∝ I
या,
V = R I
या,
R = V / I = c o n s t .
जहाँ वास्तव में 'ओम का नियम' कोई नियम नहीं है बल्कि यह ऐसी वस्तुओं के 'प्रतिरोध' को परिभाषित करता है जिनको अब 'ओमीय प्रतिरोध' कहते हैं। दूसरे शब्दों में यह उन वस्तुओं के उस गुण को रेखांकित करता है जिनका V-I वैशिष्ट्य एक सरल रेखा होती है। ज्ञातव्य है कि वैद्युत अभियांत्रिकी एवं इलेक्ट्रानिक्स में प्रयुक्त बहुत सी युक्तियाँ ओम के नियम का पालन नहीं करती हैं। ऐसी युक्तियों को अनओमीय युक्तियाँ कहते हैं। उदाहरण के लिये, डायोड एक अनओमीय युक्ति है।