अबुल फजल ने जैसलमेर दुर्ग के लिए यह कथन कहा है की जैसलमेर दुर्ग तक पहुंचने के लिए पत्थर की टांगे होनी चाहिए। जैसलमेर दुर्ग में अर्द्ध साका 1550 में राव लूणकरण के समय हुआ था। अर्द्ध साके में केसरिया किया गया लेकिन जौहर नहीं हुआ इसीलिए अर्द्ध साका कहलाता है।