कहानी नाव में बन्दी जनों से शुरू होती हैं जहाँ कहानी की नायिका चम्पा सहित कुछ जलदस्यु मणिभद्र द्वारा बंदी बने होते हैं। कुछ ही देर बाद बन्दी खुद को मुक्त कर लेते हैं और मुक्ति का श्रेय जलदस्यु बुधगुप्त को जाता है। मुक्ति उपरांत वे एक दीप पर निवास करने लगते हैं, जिस दीप का नाम चम्पादीप सुझाया जाता है।